Suryavansh aur Chandravansh

सूर्यवंश और चन्द्रवंश 

सूर्योदय के साथ भोर होती है | और चंद्र रात को साथ लिए आता है | ये दिन और रात का चक्र ही सृष्टि को चलाता है | अपनी दो आखों की कभी तुलना नहीं की जा सकती, उसीप्रकार सूर्य और चंद्र की भी तुलना नहीं की जा सकती | क्योंकि..... आवश्यकता तो दोनों की होती है |  






भारत में अनेक वंश और उसकी शाखाएँ देखी जाती है | जिसमे सूर्यवंश, चन्द्रवंश, अग्निवंश, ऋषिवंश, यदुवंश, पुरुवंश इ. अनेक वंश है | इसमें हम देखेंगे सूर्यवंश और चंद्रवंश एकदूसरे से कैसे जुड़े हैं | 

वैवस्वत मनु की संतान 
ब्रह्मा जी के पुत्र मरीची और मरीचि के पुत्र कश्यप हुए | कश्यप और आदिती से विवस्वान (सूर्य) का जन्म हुआ | सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु हुए | इन्हे श्राद्धदेव भी कहा जाता है | मनु जब संतानहीन थे तब वशिष्ठ जी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति कराने हेतु यज्ञ कराया | उस वक्त मनु की पत्नी श्रद्धा ने होता के पास जाकर कहा - "मुझे कन्या चाहिए |" 
इसलिए यज्ञ की आहुति के समय होता ने श्रद्धा के कहेनुसार संकल्प किया | और 'इला' नामक पुत्री का जन्म हुआ | तब मनु ने वशिष्ठ जी से पूछा "यज्ञ का विपरीत फल कैसे हुआ |" 
तब वशिष्ठ को सारी बात का पता चला के ये मनुपत्नी श्रद्धा की इच्छानुसार हुआ है | फिर उन्होंने श्रीहरि को प्रसन्न करके अपने तप के प्रभाव से इला को पुरुषत्व प्रदान किया और उसका नाम 'सुद्युम्न' रखा | 

एक बार प्रतापी सुद्युम्न अपने मंत्रियों के साथ घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए गए | वहा एक मृग का पीछा करते हुए उत्तर दिशा की ओर चले गए और किसी वन में घुस गए | उस वन में प्रवेश करते ही सुद्युम्न स्त्री रूप हो गए और घोडा भी घोड़ी बन गया | उसके मंत्री भी स्त्री बन गए | क्योंकि उस वन को शिव जी द्वारा अभिमंत्रित किया गया था | शिव और पार्वती जब एकांतवास में थे तब देवी पार्वती ने शिव जी से कहा - 
"इस वन में आपके सिवा कोई पुरुष न हो | यदि कोई पुरुष इस वन में प्रवेश करता है तो वह नारी बन जाए |" 
तब से कोई भी पुरुष इस स्थान के पास नहीं जाता था | इस वन के बारे में सुद्युम्न को पता नहीं था | अब सुद्युम्न स्त्री रूप होकर फिर से इला बन गए थे | वह इला वन में इधर उधर घूमने लगी | उस समय बुध की दृष्टी इला पर पड़ी | 

बुध का जन्म 
ब्रम्हदेव के पुत्र अत्रि हुए | अत्रि के नेत्रों से अमृतमय चन्द्रमा (सोम) की  उत्पत्ति हुई | ब्रम्हा जी ने चंद्र को औषधि और आकाश के नक्षत्रों का अधिपति बनाया | इसके बाद चंद्र को अपने पे बड़ा गर्व हुआ | उसने घमंड में आकर बृहस्पति की पत्नी तारा का बलपूर्वक हरण किया | बृहस्पति ने चंद्र से अपनी पत्नी को लौटा देने को कहा | परन्तु चंद्र ने तारा को नहीं लौटाया | फिर दोनों में संग्राम छिड़ गया | तब शुक्र ने बृहस्पति से द्वेष के कारण चंद्र का पक्ष लिया | और स्वर्गाधिपति इंद्र ने अपने गुरु बृहस्पति का पक्ष लिया | फिर देवता और दानवों में बड़ा भारी संग्राम हुआ | उस समय ब्रम्हा जी चंद्र के पास गए और उसे उसकी गलती बताकर कहा के उसने दूसरे की पत्नी का हरण करके बड़ा ही निंदनीय कृत्य किया है | ब्रम्हा जी ने चंद्र से तारा को लेकर बृहस्पति के हवाले कर दिया | उस समय तारा गर्भवती थी | बृहस्पति ने पूछा - "यह किसका पुत्र है |" उस वक्त तारा ने लज्जा के कारण कुछ नहीं कहा और उस बालक को अपने गर्भ से अलग कर दिया | बालक को देखकर बृहस्पति और चन्द्रमा मोहित हो गए और दोनों कहने लगे "ये मेरा पुत्र है |" तब ब्रम्हा जी ने तारा को समझाकर शांति से पूछा तब तारा ने बताया की ये चंद्र का पुत्र है | फिर चंद्र ने उस पुत्र को अपनाया | गंभीर बुद्धि का होने के कारण ब्रम्हा जी ने उसका नाम 'बुध' रखा | 

चन्द्रवंश 
बुध ने जब वन में घूमती हुई इला को देखा तो उसे अपनी पत्नी बनाना चाहा | इला को भी बुध पसंद आ गए | और दोनों ने विवाह कर लिया | उनसे 'पुरुरवा' नामक पुत्र हुआ | कुछ समय बाद इला को अपने सुद्युम्न होने का स्मरण हुआ | उसने अपने कुलगुरु वशिष्ठ जी के पास जाकर अपने स्त्री बन जाने का वृतांत सुनाया | फिर वशिष्ठ ने इला को पुनः पुरुषत्व प्राप्त हो इस हेतु से शिव जी की आराधना की | तब शिव जी ने प्रसन्न होकर कहा - "सुद्युम्न एक महीना पुरुष रहे और एक महीना स्त्री | और इसी व्यवस्था से वह पृथ्वी का पालन करे |"
इसप्रकार वर मिलने से सुद्युम्न किम्पुरुष हो गए | अब वे पुरुरवा की माता भी थे और पिता भी | बुध के भवन में वे स्त्री रूप (इला) से रहते थे | फिर महीने बाद सुद्युम्न बन जाते थे | सुद्युम्न को उत्कल, गय, और विमल नामक पुत्र हुए | वृद्धकाल आने पर सुद्युम्न ने पृथ्वी का राज्य अपने बड़े पुत्र पुरुरवा को सौप दिया और वन चले गए | बुधपुत्र पुरुरवा से ही चन्द्रवंश आगे बढ़ा | 

सूर्यवंश
सुद्युम्न के बाद वैवस्वत मनु ने पुत्रप्राप्ति के लिए तपस्या की | उन्हें दस पुत्र हुए | उनमे इक्ष्वाकु सबसे बड़े थे | इक्ष्वाकु से ही सूर्यवंश आगे बढ़ा | 





इसप्रकार दोनों वंशों की उत्पत्ति हुई | जिसप्रकार चन्द्रमा सूर्य से प्रकाशित होता है, उसीप्रकार चन्द्रवंश सूर्यवंश से ही निकला हुआ है | ऐसा कहा जाता है के सूर्यवंशी पराक्रमी और सत्यप्रतिज्ञ होते हैं | और चंद्रवंशी कलाप्रेमी और भावुक होते हैं | परन्तु ये दोनों गुण दोनों वंशों में दिखाई देते हैं | सूर्यवंश में नियम और मर्यादा का पालन होता है | और चन्द्रवंश रोचक, अस्पष्ट, अनोखा नजर आता है |

भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम सूर्यवंश में प्रकट हुए और श्रीकृष्ण चन्द्रवंश में | भगवान ने दोनों वंशों में अवतार लिया | सूर्यवंशी श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे | अपने पिता के वचनपूर्ति के लिए वनवास चले गए | सूर्यवंश में अधिकतर अपने वचन के लिए प्राण भी दांव पर लगा देते हैं | इसके विपरीत चंद्रवंशी श्रीकृष्ण लीलाधर है | कोई भी नियम उन्हें मर्यादित नहीं कर सकता | महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण अपनी कूटनीति से दुर्जनों का संहार करते हुए दिखाई देते है | 

रामायण का संबंध सूर्यवंश से और महाभारत चंद्रवंशी राजाओं का इतिहास है | वचन का पालन करने वाले राजा रघु, दिलीप, मुचुकुंद, मान्धाता, हरिश्चंद्र इ. सूर्यवंश में हुए | और पुरु, यदु, ययाति, नहुष तथा संपूर्ण कुरुवंश (कौरव और पांडव) इ. चन्द्रवंश में हुए | 
कोई भी वंश एकदूसरे से महान या छोटा नहीं होता | दोनों समान रूप से एकदूसरे के पूरक होते हैं | 

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संदर्भ -
श्रीमद भागवत महापुराण 
पद्म पुराण - सृष्टि खंड
हरिवंश पुराण 
ब्रह्म पुराण 
विष्णु पुराण 
अग्नि पुराण 
मत्स्य पुराण 
महाभारत 
वाल्मीकि रामायण - उत्तरकाण्ड 
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पूजा लखामदे © 2022
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