Muchukund aur Kalyavan

मुचुकुंद और कालयवन 
क्या आप जानते हैं ? पृथ्वी पर अत्यधिक समय के लिए सोने वाला केवल कुंभकर्ण नहीं है | क्योंकि भारतवर्ष में एक ऐसे राजा हुए जिनको सोते हुए युग बीत गए | 


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जरासंध की पराजय 
श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस का वध करके अपने माता-पिता देवकी और वसुदेव को कारागार से मुक्त किया था | कंस की मृत्यु के बाद उसकी स्त्रियां अपने पिता जरासंध के घर लौटी | मगधपति जरासंध कृष्ण से अपने जमाता कंस के वध का प्रतिशोध लेना चाहता था | उसने सभी यादवों को नष्ट करने का निश्चय किया | इसलिए जरासंध ने मथुरा पर १७ बार आक्रमण किये | लेकिन हर बार उसे कृष्ण और बलराम ने पराजित कर दिया | हारने के बाद जरासंध युद्ध से पलायन करके मगध लौट आता था |

एक बार सौभ विमान के अधिपति शाल्व ने जरासंध को कालयवन के बारे में बताया और कालयवन से सहायता लेने को कहा | जरासंध ने शाल्व को दूत बनाकर यवन देश भेजा | शाल्व ने विमानद्वारा आकाश मार्ग से जाकर कालयवन को युद्ध में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया |

कालयवन
कालयवन यवन देश का राजा था उस समय अरब देश या गांधार (कंदहार) के आसपास के प्रदेश में रहने वाले लोगों को 'यवन' कहते थे |
कालयवन गार्ग्यमुनि का पुत्र था गार्ग्यमुनि यादवों के पुरोहित थे |

कालयवन का जन्म
एकदिन यादवों की राजसभा में गार्ग्यमुनि को उन्ही के साले ने नपुंसक कह दिया | तो उपस्थित सभी यादव उन पर हस पड़े | भरी राजसभा में इसप्रकार अपमान होने के बाद गार्ग्य को बड़ा क्रोध आया | उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या आरंभ की | महादेव जी की आराधना करते हुए वे बारा वर्ष तक केवल लोहे का चूर्ण खाकर रहे | उनकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए | गार्ग्य ने शिव जी से ऐसे पुत्र का वरदान माँगा जो वृष्णि और अंधक वंशी यादवों के लिए अवध्य हो | जिसके सामने सारे शस्त्र-अस्त्र निस्तेज हो जाए, उसे युद्ध में कोई पराजित न कर पाए | भगवान् शिव ने गार्ग्य मुनि को अभिष्ट वर प्रदान किया | 

ये बात एक पुत्रहीन यवनराज को पता चली | उसने गार्ग्य को सांत्वनापूर्वक घर लाकर उनकी सेवा की और उन्हें प्रसन्न किया | एक दिन उस यवनराज ने गोपाली नामक अप्सरा को गार्ग्यमुनि की सेवा में भेजा | उसी अप्सरा के गर्भ से कालयवन का जन्म हुआ | पुत्रहीन राजा के अंतःपुर में उसका लालन पालन होने लगा | और यवनराज की मृत्यु के बाद कालयवन उस राज्य का अधिपति बना | कुछ समय बाद कालयवन दुराचारी हो गया | एकदिन उसकी सभा में नारद जी आये | कालयवन ने उनसे पुछा, "पृथ्वीपर ऐसा कौन बलवान है, जिससे मैं युद्ध करू ?" तब नारद जी ने उसे यादवों का परिचय दिया |

जब सौभपति शाल्व जरासंध का सन्देश लेकर कालयवन के पास आया | तब कालयवन, जरासंधादि राजाओं की कृष्ण के विरुद्ध युद्ध में सहायता करने के लिए तैयार हो गया | 

श्रीकृष्ण को इस बात का पता चला के जरासंध ने कालयवन से हाथ मिला लिया है | उस समय जरासंध के लगातार आक्रमणों की वजह से मथुरा छिन्न भिन्न हो गया था | युद्ध में अनेक सैनिक भी मारे गए थे और मथुरा की सेना भी थक गई थी | मथुरा के शक्तिहीन सैनिकों के लिए जरासंध की सेना को रोकना ही अत्यंत कठिन कार्य था | फिर जब यादवों ने कालयवन का भी आगमन सुना तो उन्होंने मथुरा से हट जाना ही ठीक समझा | इसलिए अधिक संहार व्यर्थ मानकर कृष्ण ने किसी अन्य स्थान पर नयी नगरी बसाने का निर्णय किया | 

द्वारका निर्माण 
पश्चिम समुद्र के तट पर कुशस्थली नामक प्रदेश था | यह प्रदेश बलराम को उसके श्वसुर रेवत ने अपनी पुत्री रेवती के साथ कन्यादान में दिया था | श्रीकृष्ण कुशस्थली आये और यही पर उन्होंने समुद्र से बारह योजन भूमि मांग कर विश्वकर्मा द्वारा नई नगरी 'द्वारका' बसाई | समुद्र से घिरी होने के कारण द्वारका का स्थान यादवों के लिए सुरक्षित था | कृष्ण ने सभी मथुरा वासियों को द्वारका भेज दिया और कालयवन से निपटने के लिए स्वयं मथुरा में ही रहे |

कालयवन की मृत्यु 
बाद में कालयवन अपनी म्लेंच्छ सेना के साथ मथुरा पर चढ़ आया | भगवान शिव के वरदान के कारण श्रीकृष्ण उसे युद्ध में पराजित भी नहीं कर सकते थे | इसलिए उन्होंने रण छोड़ दिया और भागे | रणभूमि से भागने के कारण उन्हें 'रणछोड़' नाम मिला | कालयवन श्रीकृष्ण को पकड़ने के लिए उनके पीछे भागा |  कृष्ण कालयवन को अपने पीछे दौड़ाते हुए एक गुफा के अंदर घुस गए | उस गुफा में महाराज मुचुकुन्द सो रहे थे | श्रीकृष्ण ने अपना पितांबर मुचुकुन्द पर डाला और उसी गुफा में छिप गए | जब कालयवन ने उस गुफा में प्रवेश किया तो वहा उसने एक सोये हुए मनुष्य को देखा | कालयवन ने सोचा, सोया हुआ व्यक्ति कृष्ण है | इसलिए उसने जोर से उस व्यक्ति को लात मारी | तब बड़े काल से सोये हुए मुचुकुन्द की निद्रा भंग हुई थी | पैर की ठोकर लगने से वे उठे और धीरे धीरे उन्होंने अपनी आँखे खोली | उन्होंने सामने खड़े कालयवन को देखा | मुचुकुंद की दृष्टी पड़ते ही कालयवन के शरीर में आग जलने लगी और वह भस्म हो गया | 

मुचुकुंद 
ये इक्ष्वाकु वंशी मांधाता के पुत्र थे और श्रीराम के पूर्वज थे | प्राचीन काल में जब देवता और असुरों में संग्राम हुआ था, तब मुचुकुंद ने देवताओं की ओर से युद्ध किया जिस कारण देवता युद्ध जित गए थे | मुचुकुंद ने बहुत समय तक स्वर्ग का रक्षण किया था | बाद में स्वर्ग के रक्षण हेतु देवताओं को सेनापति के रूप में स्वामी कार्तिकेय मिल गए | तब देवों ने मुचुकुंद से कहा- "हे राजन ! आपने हमारी रक्षा करते हुए बहुत श्रम किये हैं | अब आप विश्राम कीजिए | आपने स्वर्ग की रक्षा के लिए पृथ्वीलोक का अपना राज्य छोड़ दिया तथा भोगों का भी त्याग कर दिया | स्वर्ग और पृथ्वी के बीच समय का बहुत अंतर है | इसलिए अब वो समय नहीं रहा | आपके सारे बंधु-बांधव, पुत्र, रानियाँ तथा आपकी उस समय की प्रजा ये सब के सब काल के गाल में चले गए | अब उस समय का पृथ्वीलोक पर कोई भी नहीं बचा | इसलिए आप अपनी  इच्छानुसार मोक्ष के अलावा हमसे कोई भी वर मांग लीजिए | क्योंकि मोक्ष देना हमारे वश में नहीं |" 
मुचुकुंद युद्ध के कारण बहुत थके हुए थे | इसलिए उन्होंने देवताओं से निद्रा का वर मांग लिया | वर देते हुए देवताओं ने कहा- "जो कोई आपको सोते से जगाएगा वो आपकी दृष्टी पड़ते ही आपकी क्रोधाग्नि से भस्म हो जाएगा |" वर पाकर राजा मुचुकुंद पृथ्वीपर गए और किसी गुफा में जाकर निर्जन स्थान पर सो गए | 

युगों से उन्होंने अपनी आँखे नहीं खोली थी | इसकारण इतनी शक्ति एकत्रित हुई थी के उनकी दृष्टी प्रथम बार जिसपर भी पड़ती उसे भस्म ही होना था | 

भगवान के दर्शन 
कालयवन का अंत होते ही भगवान श्रीकृष्ण मुचुकुंद के सामने आये और अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दिए | मुचुकुंद ने जान लिया के ये पुरुषोत्तम भगवान विष्णु ही हैं | तब आनंद से भरकर उन्होंने भगवान के चरणों में प्रणाम किया | फिर दोनों गुफा से बाहर निकले | श्रीकृष्ण ने कहा-"राजन ! आप त्रेतायुग में सोये थे | ये द्वापर और कलियुग का संधिकाल है |"

युग बदलने के कारण मुचुकुंद को सारी सृष्टि में परिवर्तन दिखाई दिया | मुचुकुंद ने देखा मनुष्य, वृक्ष, पशु सब के सब आकार में छोटे-छोटे हो गए है | मनुष्यों के बल, उत्साह, वीर्य और पराक्रम बहुत थोड़े हैं | यह देखकर उन्होंने समझ लिया के अब कलियुग का प्रारंभ होने वाला है | तब मुचुकुंद ने श्रीकृष्ण की परिक्रमा की और बड़े प्रेम भाव से उन्हें विदा कर उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान किया | वहा गंधमादन पर्वत पर जाकर तपस्या के द्वारा उन्होंने अपना चित्त भगवान नारायण की आराधना में लगाया | 

मुचुकुंद जिस गुफा में सोये थे वह स्थान राजस्थान में धौलपुर जिले के निकट मुचुकुंद तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है | यहा मुचुकुंद के नाम से गुफा और सरोवर भी है | यहा हर वर्ष धार्मिक मेला लगता है | 

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संदर्भ -
श्रीमद् भागवत 
हरिवंश पुराण 
विष्णु पुराण 
महाभारत
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पूजा लखामदे © 2021

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