#Rajdand #Sengol
राजदंड राजदंड न्याय का प्रतिक है | दंड प्रजा का शासनकर्ता, रक्षक है और सोते हुए मनुष्योंमें जागता रहता है इसीलिए बुद्धिमान लोग दंड को ही धर्म कहते हैं | राज्य में दंड के न होने पर मात्स्यन्याय छा जाता है | बलवान कमजोर को खाने लगता है | इसीलिए दंड का विधान आवश्यक है | #सेंगोल, यह तमिल शब्द हैं | इसका अर्थ है राजदंड | इसे ब्रह्मदण्ड या धर्मदंड भी कहते है | इसे सत्ता हस्तांतरण के वक्त इस्तेमाल किया जाता था | राज्याभिषेक के बाद राजा यह दंड धारण करते थे | राज्य के पुरोहित नए राजा को यह राजदंड सौपते थे | कुछ राज्यों मे मौजूदा राजा नए राजा को सत्ता हस्तांतरण के रूप में राजदंड सौपता था | यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है | महाभारत (शांतिपर्व) इसमें अर्जुन युधिष्ठिर को राजदंड की महत्ता समझाते हुए कहते है | राजन, दंड समस्त प्रजाओं का शासन करता है, दंड ही उनकी सब ओर से रक्षा करता है | यह उदंड मनुष्यों का दमन करता है और दुष्टोंको दंड देता है | राजदंड राजाका धर्म है | इसलिए आप इसे धारण करें | स एष निहतः शेते ब्रह्मदण्डेन राक्षस: | चार्वाकों नृपतिश्रेष्ठ मा शुचो भरतर्षभ || अर्थ - नृपश्रेष