mayamrug
मायामृग
रामायण काल का यह मृग मारीच नामक एक मायावी राक्षस है, जो रावण की आज्ञा के कारण निर्दोष पीड़ित है | एक ऐसा अनुचर जिसे अपने स्वामी के लिये अपनी बलि देनी पड़ी थी |
मारीच मायावी था और अपनी माया से अपना रूप भी बदल सकता था | ये ताटका और सुंद इन यक्षों का पुत्र था, जो अगस्त्य मुनि के श्राप के कारण राक्षस बना |
मारीच का प्रथम बार श्रीराम से सामना
मुनि विश्वामित्र का यज्ञ सिद्धाश्रम (आज की स्थिति में - बिहार, बक्सर ) में चल रहा था | मारीच और सुबाहु राक्षस मुनि विश्वामित्र के हर यज्ञ में रुधिर और मांस फेंककर विघ्न उत्पन्न करते थे | यज्ञ के व्रत के नियमानुसार विश्वामित्र उन्हें श्राप भी नहीं दे सकते थे | इन राक्षसों को रोकने के लिए इसबार उन्होंने यज्ञरक्षण हेतु राम-लक्ष्मण की योजना की थी | छह दिन तक बिना निद्रा लिए उन धनुर्धारी राजपुत्रों ने विश्वामित्र के यज्ञ का रक्षण किया | किन्तु छह दिन बाद अचानक यज्ञवेदी पर आग जलने लगी और रुधिर की वर्षा होने लगी (राक्षसी माया) | राम ने आकाश में अन्य राक्षसों के साथ मारीच और सुबाहु को उनकी तरफ आते हुए देखा | उस वक्त राम ने सभी राक्षसों का वध किया तथा मारीच को मानवास्त्र से उड़ाकर सौ योजन दूर समुद्र में फेंक दिया | रामबाण वक्षस्थल पर लगने से मारीच बेहोश हो गया |
पंचवटी
अपने वनवास काल में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण सहित दंडकारण्य में वास्तव्य के लिए आये और पंचवटी जनस्थान में रहने लगे | आज की स्थिति में यह स्थान नासिक, महाराष्ट्र में गोदावरी के तट पर है | रामायण की मुख्य कथा इस स्थान पर घटित हुई | यही पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा के नाक और कान काटे थे | शूर्पणखा का नासिकाच्छेद होने के कारण इस स्थान को नासिक नाम मिला |
उस समय दंडकारण्य क्षेत्र में राक्षसों का बहुत आतंक हुआ करता था | श्रीराम ने दंडकारण्य में आने के बाद ऋषियों को निर्भय कर जनस्थान में शांति स्थापित कर दी थी |
पंचवटी मानचित्र |
मारीच ने एकबार बड़े बलवान मृग जैसा रूप धारण किया और अन्य दो मृगरूपी राक्षसों के साथ दंडकवन आया | वहा धर्माचारी तपस्वीयों को उत्पीड़ित कर उनका वध करने लगा | श्रीराम से उसकी पुरानी शत्रुता थी | इसलिए मारीच ने रामजी को मार डालने की इच्छा से उनपर चाल की | श्रीराम ने धनुष उठाकर तीन बाण छोड़े | तब भयभीत होकर मारीच ने उस जगह से झट से पलायन किया और अपने प्राण बचाये | उसके दो साथी राक्षस उन बाणों से मारे गए | तब से मारीच ने सभी पापों का त्याग किया तथा अपने मन को वश में किया | और कृष्ण-मृग-वर्म ओढ़कर नियमित आहार करने वाला तपोनिष्ठ बन गया | इस प्रसंग के बाद मारीच श्रीराम से इतना डरने लगा के उसे स्वप्न में भी राम दिखने लगे और र से आरंभ होने वाले नामों से भी उसे भय उत्पन्न होने लगा |
रावण की मारीच से भेट
शूर्पणखा के अपमान का प्रतिशोध लेने हेतु रावण ने सीताहरण की योजना बनाई | इसलिए वो अपने भूतपूर्व मंत्री मारीच से मिलने गया | रावण महासागर पार करके गोकर्ण तीर्थ (कर्नाटक) पहुंचा, जहा मारीच श्रीराम के डर से छिपा बैठा था | रावण ने मारीच को सीताहरण की योजना बताई और कहा -
" तुम एक सोने का हिरण बनो और सीता को मोहित करो, फिर वो राम के पास मृग को पकड़कर लाने की मांग करेगी | वहा राम तुम्हे पकड़ने जाएगा और यहा मैं सीता को हरकर ले जाऊंगा |"
यह सुनकर श्रीराम का पराक्रम जानने वाला मारीच भयभीत हो उठा और कहने लगा -
"जिसने ताटका, सुबाहु को मारकर शिवजी का धनुष तोड़ दिया और खर दूषण सहित चौदा हजार राक्षसों का अकेले ही वध कर डाला ऐसा प्रचंड बली भी कही मनुष्य हो सकता है? हे दशानन, जिसे रामधनुष का संरक्षण प्राप्त है, उस सीता को हरने में तुम समर्थ नहीं | यह व्यर्थ उद्योग करके तुम मृत्यु को ही प्राप्त होंगे | मेरे मना करने पर भी तुम श्रीराम से भिड़ने का साहस करोगे तो तुम्हारे साथ साथ मेरी भी मृत्यु निश्चित है | यदि तुम्हारे कहने पर मैं फिर से श्रीराम के सामने गया तो रामदर्शन मुझे होते ही तू मुझे मरा हुआ समझ ले | साथ ही सीता को हरने से तू भी अपने को परिवार सहित मरा हुआ समझ ले | फिर राक्षस भी नहीं रहेंगे और लंका की भी कुशल नही | "
किन्तु जिसप्रकार मरने की इच्छा करनेवाला व्यक्ति औषधी देने पर भी उसका स्वीकार नहीं करता उसी प्रकार मारीच का उपदेश रावण ने अस्वीकार किया और क्रोधित होकर कहने लगा -
"यदि मेरी बात नहीं मानोगे, तो मैं आज ही तुम्हारा वध करूंगा |"
मारीच ने सोचा यदि दोनों तरफ से मृत्यु निश्चित है, तो क्यों न श्रेष्ठ पुरुष के हाथों से ही मरु ? फिर मारीच ने स्वयं ही अपना श्राद्ध-तर्पण कर लिया और रावण की योजना में सम्मिलित हो गया |
मारीच का मृगरूप
रावण और मारीच दंडकारण्य में रामाश्रम के समीप पहुँचे | रावण की आज्ञा होते ही मारीच ने अपनी माया से (दुसरीबार) मृगरूप धारण किया | इस बार वह इंद्रधनुषी पूँछ वाला अद्भुत मृग बन गया | उसका शरीर चांदी की सैकड़ो बूँदों से विभूषित था | उसके सींग मणी के थे | ऐसा सुनहरा मृग देवी सीता की दृष्टी में आया तो उन्होंने श्रीराम से मृग को पकड़कर लाने की मांग की | तब लक्ष्मण ने कहा -
"यह मृगरूप धारण करने वाला मारीच राक्षस होगा, यह उसकी माया है | क्योंकि ऐसा चित्रविचित्र रत्नों वाला मृग समस्त पृथ्वी पर नही |"
उसपर रामजी ने कहा -
"जमीन पर संचार करने वाला श्रीमान मृग और आकाश में संचार करने वाला नक्षत्ररूपी मृग ऐसे भुमृग और तारामृग (मृग नक्षत्र) ये दो ही दिव्य मृग है | अतः हे लक्ष्मण यदि ये राक्षस की माया है, तो इसका वध मेरा कर्तव्य है | क्योंकि इस दुष्ट मारीच ने वनों में विचरते हुए कई बार मुनियों का वध किया है |"
सीताहरण
फिर सीता को लक्ष्मण के संरक्षण में छोड़कर श्रीराम मायामृग के पीछे गए | मारीच कभी छिपता तो कभी प्रकट हो जाता था | इसतरह छल करते हुए वो रामजी को आश्रम से दूर लेकर गया | तब श्रीराम ने ब्रम्हास्त्र से अभिमंत्रित बाण मृग पर छोड़ा, जिसके लगते ही वह घोर शब्द करके पृथ्वी पर गिर पड़ा | और मायावी शरीर त्याग कर उसने अपना राक्षसी शरीर प्रकट किया | रावण की आज्ञा का स्मरण करते हुए मरते मरते उसने जोर से पुकारा, "हे सीते ! हे लक्ष्मण !" और अपने प्राण त्याग दिए |
मारीच की आवाज सुनकर सीता को लगा, रामजी ही संकट में हैं और पुकार रहे हैं | इसलिए व्याकुल हुई सीता ने लक्ष्मण को उधर जाने के लिए कहा | लक्ष्मण ने देवी सीता को समझाया के ये आवाज रामजी की नहीं है | फिर भी भयभीत हुई सीता ने कड़वे वचन कहकर लक्ष्मण को जाने के लिए विवश कर दिया | लक्ष्मण के जाते ही कुछ समय बाद रावण ने सन्यासी के भेष में आकर देवी सीता का हरण किया | यह घटना राम-रावण युद्ध का महत्वपूर्ण कारण बनी |
मारीच के वध का स्थान नासिक में पंचवटी के निकट मृगव्याधेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है |
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संदर्भ -
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संदर्भ -
वाल्मीकि रामायण - बालकाण्ड, अरण्यकाण्ड
तुलसीदास - रामचरितमानस
महाभारत - वनपर्व
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पूजा लखामदे © 2020
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पूजा लखामदे © 2020
Good one Pooja..
जवाब देंहटाएंNice.
जवाब देंहटाएंHey very well described. Keep it up dear.
जवाब देंहटाएंMstch 👌👌
जवाब देंहटाएंखूप सुंदर लेखन पुजा
जवाब देंहटाएंNice work...
जवाब देंहटाएंBahut acha likha hai apne
जवाब देंहटाएंvery nice
जवाब देंहटाएंReally very informative
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